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Saturday, February 18, 2012
नया साल और नया स्कूल
मै 'अपूर्व कौशिक' |
वैसे मै तो बड़ा होकर देशभक्त बनना चाहता हूँ किन्तु सब कहते हैं इसकी कोई कक्षा नहीं है. वैसे इस बार मेरा इरादा था की वोट दूँ और अच्छी सरकार चुनु किन्तु माँ से पता चला की मेरा तो वोट ही नहीं बना अब तक. अब मेरी माँ सबसे कहती रहती हैं की वोट दो वोट दो और मेरा वोट नहीं बनाया अभी तक. मैंने पूछा तो कहा की मै छोटा हूँ. कभी कभी समझ नहीं आता की मै छोटा हूँ या बड़ा हूँ? यदि आपको आता हो तो मुझे बता देना.
बात तो चल रही थी की अब मै नयी कक्षा में आ जाऊंगा इससे मै बहुत खुश हूँ. मुझे नयी किताबे मिलेंगी और नया स्कूल भी पर सबसे जयादा ख़ुशी इस बात की है की अब हम दोनों भाई एक ही स्कूल में पढेंगे. अब मै ये पोस्ट बंद कर रहा हूँ नहीं तो माँ डाटेंगी.
सबको नमस्ते
अपूर्व कौशिक
एक सुन्दर कविता♥
ये बात समझ मेँ आयी नहीँ,
और मम्मी ने समझाई नहीँ।
मैँ कैसे मीठी बात करुँ?
जब मीठी चीज कोई खाई नहीँ।
ये चाँद भी कैसा मामू है?
जब मम्मी का वो भाई नहीँ।
क्योँ लम्बे बाल हैँ भालू के?
क्योँ उसने ट्रिमिँग कराई नहीँ?
क्या वो भी गंदा बच्चा है?
या जंगल मेँ कोई नाई नहीँ।
नाना की पत्नी जब नानी है, दादा की पत्नी दादी है,
तब पापा की पत्नी क्योँ पापी नहीँ?
समुन्दर का रंग क्योँ नीला है?
जब नील किसी ने मिलाई नहीँ।
जब स्कूल मेँ इतनी नीँद आती है,
तो क्यूँ बैड वहाँ रखवाई नहीँ?
ये बात समझ मेँ आयी नहीँ,
और मम्मी ने समझाई नहीँ;)
द्वारा श्री श्री १००८ ठलुआनंद जी महाराज
अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ठलुआ क्लब
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